बीमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है,मगर मौत का कोई इलाज़ नहीं दुनियावी हिसाब किताब है कोई दावा ए खुदाई नहीं लाल किताब है ज्योतिष निराली जो किस्मत सोई को जगा देती है फरमान दे के पक्का आखरी दो लफ्ज़ में जेहमत हटा देती है

Saturday 30 March 2024

2024 का पहला सूर्य ग्रहण☀️ 08 अप्रैल 2024, सोमवार

अंतर्गत लेख:

L.K.A. 31/3/2024

वर्ष 2024 का पहला सूर्यग्रहण 08 अप्रैल, सोमवार को लगने जा रहा है। साल का पहला सूर्यग्रहण पूर्ण सूर्यग्रहण होगा। अब से ठीक 54 साल पहले यानी 1970 में ऐसा सूर्यग्रहण लगा था। 

▪️सूर्यग्रहण का समय-: 

• 08 अप्रैल को सूर्यग्रहण दिल्ली समयानुसार रात में 09 बजकर 12 मिनट पर प्रारंभ हो जाएगा।

• सूर्यग्रहण का खग्रास प्रारंभ 10 बजकर 10 मिनट से होगा।

• सूर्यग्रहण का मध्य रात में 11 बजकर 47 मिनट पर रहेगा।

• खग्रास समाप्त मध्य रात्रि 01 बजकर 25 मिनट पर।

• सूर्य ग्रहण मध्य रात्रि में 02 बजकर 22 मिनट पर समाप्त हो जाएगा।

• ऐसे में साल के पहले सूर्यग्रहण की अवधि 05 घंटे 10 मिनट की होगी।

 08अप्रैल को लगने वाले इस सूर्यग्रहण के दौरान 07 मिनट 50 सेकंड तक सूर्य पूरी तरह से नहीं देखा जा सकेगा। 

यानी इस अवधि तक सूर्य पूरी तरह से ढक जाएगा। ऐसे में अमेरिका के कई हिस्सों में दिन में ही अंधेरा छा जाएगा। हालांकि, यह सूर्यग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए इसका सूतक काल भी भारत में मान्य नहीं होगा।

सूर्य ग्रहण और सूतक काल का समय-: 

सूर्य ग्रहण शुरू होने से 12 घंटे पहले सूर्य ग्रहण का सूतक काल प्रारंभ हो जाता है। सूर्य ग्रहण के दौरान शास्त्रों में बताए हुए नियमों का पालन जरूर करना चाहिए जैसे-: सूर्य ग्रहण के दौरान भोजन इत्यादि नहीं करना चाहिए, ग्रहण के समय मंदिरों को पट बंद कर दिए जाते हैं और किसी भी तरह के मांगलिक कार्य नहीं किये जाते। इस समय के दौरान गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधान रहना चाहिए और सूर्य ग्रहण के दौरान घर के बाहर नहीं निकलना चाहिए।


▪️कहां-कहां दिखाई देगा साल का पहला सूर्यग्रहण-: 

साल का पहला सूर्यग्रहण भारत में नजर नहीं आएगा इसलिए इसका सूतक काल भी यहां मान्य नहीं होगा। यह पूर्ण सूर्यग्रहण अलास्का को छोड़कर संपूर्ण अमेरिका, मध्य अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, सहित कुछ उत्तरी भागों में आयरलैंड, इंग्लैंड के कुछ उत्तरी पश्चिमी क्षेत्रों और कनाडा में देखा जा सकेगा। साल का पहला पूर्ण सूर्यग्रहण सबसे पहले मेक्सिको में देखेगा जा सकेगा।


 ▪️ग्रहण का राशियों पर प्रभाव-: 

 प्राय: सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण जैसी घटनाएं शुभ नहीं मानी जाती। इससे राहु- केतु जैसे अशुभ ग्रहों का पृथ्वी- प्रकृति पर प्रभाव बढ़ता है जिसकी वजह से दुर्घटनाएं, अराजकता, अशांति ही पैदा होती है।


ज्योतिष के अनुसार ग्रहण जैसी घटनाएं प्राय: सभी के लिए अशुभ व अनिष्टकारी ही होती है, लेकिन कई राशियों पर ग्रहण के कुछ ज्यादा ही दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं।


▪️ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय-:

 ग्रहण के समय ज्यादा से ज्यादा भगवन नाम जप व मंत्र जाप करना चाहिए। श्री हनुमान चालीसा/ संकटमोचन के पाठ करने चाहिए। और ग्रहण शुद्ध होने के उपरांत अपने लग्न- नक्षत्र व राशि के अनुसार स्नान- दान- पुण्य- पूजा- उपासना इत्यादि करने चाहिए।।

                             🕉️

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Posted By Lal Kitab Anmol14:00

होली के 7 दिनों बाद शीतला सप्तमी मनाई जाती है। कुछ लोग शीतला अष्टमी भी मनाते हैं। शीतला सप्तमी को बसौड़ा भी कहा जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है।

 ⚛️शीतला सप्तमी-बसौड़ा⚛️

               शीतला माता पूजन मुहूर्त-: 01 अप्रैल 2024, सोमवार प्रातः सूर्य उदय से पहले-पहले।

🔸होली के 7 दिनों बाद शीतला सप्तमी मनाई जाती है। कुछ लोग शीतला अष्टमी भी मनाते हैं। शीतला सप्तमी को बसौड़ा भी कहा जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। 

🔸शीतला सप्तमी इस साल 01 अप्रैल, सोमवार को है। इसे शीतला सप्तमी और बसौड़ा भी कहा जाता है। जो लोग शीतला सप्तमी पर माता शीतला की पूजा करते हैं वे 01 अप्रैल, सोमवार के दिन शीतला माता का पूजन करेंगे।

🔸बसौड़े पर शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। माता का प्रसाद एक दिन पहले अर्थात 31 मार्च, रविवार को तैयार करके रख लिया जाएगा और दूसरे दिन 01 अप्रैल, सोमवार को प्रातः काल जल्दी माता को प्रसाद का भोग लगाया जाएगा।

 इस दिन बासी खाने का भोग माता शीतला को लगाया जाता है। शीतला माता ठंडक प्रदान करने वाली देवी है। होली के बाद मौसम में बदलाव आने लगता है। हल्की ठंड भी खत्म होने लगती है और गीष्म ऋतु का आगमन होता है। ऐसे में वातावरण में ठंडक की आवश्यकता होती है क्योंकि भीषण गर्मी में त्वचा सम्बधी रोग का खतरा बना रहता है। इस कारण मान्यता है कि माता शीतला का व्रत रखने और विधिवत पूजा करने से चेचक, चर्म रोग की बीमारियां दूर रहती हैं और शीतला माता का आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है।

♦️शीतला सप्तमी या बसौड़े की पूजन विधि-: 

शीतला सप्तमी दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। आप अगर सूर्य निकलने से पहले बसौड़ा पूज लेते हैं, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्न्नान कर लें। इसके बाद माता शीतला के मंदिर में जाकर विधि-विधान के साथ पूजा करें। कुछ लोग होलिका दहन वाली जगह पर भी बसौड़ा पूजते हैं। आप अपनी मान्यता अनुसार किसी भी जगह माता शीतला का ध्यान करके पूजा कर सकते हैं। सबसे पहले माता शीतला की पूजा करें। उन्हें जल चढ़ाएं, इसके बाद गुलाल, कुमकुम अर्पित करें। इसके बाद बासी भोजन जैसे पूडे, मीठे चावल, खीर, मिठाई का भोग माता शीतला को लगाएं।

बसौड़ा पूजते समय 3 बातों का खास ख्याल रखें-:

1. माता शीतला को हमेशा ठंडे खाने का भोग ही लगाया जाता है।

2. माता शीतला की पूजा करते समय दीया, धूप या अगरबत्ती नहीं जलानी चाहिए।

3. शीतला माता की पूजा में अग्नि को किसी भी तरह से शामिल नहीं किया जाता है।

मंदिर या होलिका दहन स्थल पर पूजा करने के बाद अपने घर में आकर प्रवेश द्वार के बाहर स्वास्तिक जरूर बनाएं।।

                         🕉️

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Posted By Lal Kitab Anmol13:37

Wednesday 6 December 2023

शयन का शास्त्रीय विधान

अंतर्गत लेख:

 🕉️ शयन विधान 🕉️

🔹सोने की मुद्राऐं-:  

           उल्टा सोये भोगी, 
           सीधा सोये योगी,
           दांऐं सोये रोगी,
           बाऐं सोये निरोगी।

🔹शयन का शास्त्रीय विधान-:   

➖बायीं करवट सोना स्वास्थ्य के लिये हितकर हैं।

➖शरीर विज्ञान के अनुसार चित सोने से रीढ़ की हड्डी को नुकसान और औधा या ऊल्टा सोने से आँखों की परेशानी होती है।

➖सूर्यास्त के एक प्रहर (लगभग 3 घंटे) के बाद ही शयन करना।

 ➖संधि काल में कभी नहीं सोना चाहिए। 

🔹शयन में दिशा महत्व-: 

दक्षिण दिशा (South) में पाँव रखकर कभी सोना नहीं चाहिए। इस दिशा में यम और नकारात्मक ऊर्जा का वास होता हैं। कान में हवा भरती है। मस्तिष्क  में रक्त का संचार कम को जाता है स्मृति-भ्रंश, व असंख्य बीमारियाँ होती है।

1- पूर्व ( E ) दिशा में मस्तक रखकर सोने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।

2-दक्षिण ( S ) में मस्तक रखकर सोने से आरोग्य लाभ होता है।

3-पश्चिम( W ) में मस्तक रखकर सोने से प्रबल चिंता होती है।
 
4-उत्तर ( N ) में मस्तक रखकर सोने से स्वास्थ्य खराब व मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।

🔹विशेष शयन की सावधानियाँ-: 

▪️ दीपक की तरफ मस्तक और पाँव नहीं करने चाहिए। दीपक बायीं या दायीं और कम से कम पांच हाथ दूर होना चाहिये।

▪️संध्याकाल में निद्रा नहीं लेनी चाहिए।

▪️शय्या पर बैठे-बैठे निद्रा नहीं लेनी चाहिए।

▪️द्वार के उंबरे/ देहरी/थलेटी/चौकट पर मस्तक रखकर नींद न लें।

▪️ह्रदय पर हाथ रखकर,छत के पाट या बीम के नीचें और पाँव पर पाँव चढ़ाकर निद्रा न लें।

▪️सूर्यास्त के पहले सोना नहीं चाहिए।

▪️पाँव की और शय्या ऊँची हो तो अशुभ है।  केवल चिकित्सक उपचार हेतु छूट हैं।

▪️शय्या पर बैठकर खाना-पीना अशुभ है।

▪️सोते- सोते पढना नहीं चाहिए। 

▪️ललाट पर तिलक रखकर नहीं सोना चाहिए। (इसलिये सोते वक्त तिलक मिटाने का कहा जाता है। )

▪️बाईं और करवट लेकर सोने से डाइजेशन सिस्टम बेहतर होता है। अतः सोते समय कुछ देर बाईं करवट सोना चाहिए।

▪️सोने से पूर्व भगवान का ध्यान करें और कुछ देर भगवान के पवित्र नामों का जप करें-:

सोने से पूर्व आप बिस्तर पर वे बातें सोचें, जो आप जीवन में चाहते हैं। क्योंकि सोने के पूर्व के 10 मिनट तक का समय बहुत संवेदनशील होता है जबकि आपका अवचेतन मन जाग्रत होने लगता है और उठने के बाद का कम से कम 15 मिनट का समय भी बहुत ही संवेदनशील होता है। इस दौरान आप जो भी सोचते हैं वह वास्तविक रूप में घटित होने लगता है। अत: शास्त्रों के अनुसार सोने से पूर्व आप अपने ईष्ट का ध्यान और नाम जप करने के बाद ही सोएं।। 


                       🕉️
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Posted By Lal Kitab Anmol18:17

Tuesday 5 December 2023

सनातन संस्कृति में प्रतिदिन पंचदेव उपासना करने का विधान है

अंतर्गत लेख:

 🌷 पंचदेव उपासना 🌷




भारतीय सनातन परंपरा में एक परमेश्वर की बात की गई है। लेकिन उन एक परमेश्वर इस जगत के संचालन के लिए कई वर्ग में देव, मानव, नाग, गंधर्व इत्यादि का भी सृजन किया है। हमारी सृष्टि का संचालन सुचारू रूप से चलता रहे उसके लिए कई देवी देवताओं का सृजन हुआ लेकिन इन सभी देवी देवताओं में पंच देव का नाम बहुत ही प्रमुख है।


हमारी सनातन संस्कृति में प्रतिदिन पंचदेव उपासना करने का विधान है-: 

1. श्री गणेश जी-: 

भगवान गणेशजी कई प्रकार की शक्तियों के दाता हैं। माता पार्वती के पुत्र और माता लक्ष्मी के मानस पुत्र के रूप मे इनके कृपा से सभी प्रकार की कामनाएँ पूरी होती है। साथ ही साथ रिद्धी सिद्धि के रूप मे इनकी पत्नियों की कृपा भी इनके पूजन मात्र से प्राप्त हो सकता है। प्रथम पूज्य गणेश के पूजन मात्र से हमे सुख समृद्धि धन वैभव इत्यादि सभी कामनाओं की पूर्ति होती हैं ।

 2. सूर्य देव-: 

पंच देवों में सूर्य देव भी आते है और इसके पीछे एक तर्क भी है कि सूर्य देव ही अकेले देवता है जो कि सर्व जन को दृश्यमान है। साथ ही साथ इस पृथ्वी के गति मे और इसके नियम पूर्वक संचालन मे सूर्य देव का बहुत ही ज्यादा योगदान है एवं सूर्य देव ऊर्जा के एक मात्र स्रोत भी माने जाते है इस जगत मे जो कि संसार के संचालन के लिए अति आवश्यक है। 

इसी लिए मान्यता है रोज प्रातः काल स्नान इत्यादि के उपरांत हम सभी को सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए और सूर्य नमस्कार के जरिये इनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए,जिससे पूरे दिन हमारे जीवन मे स्फूर्ति और ताजगी बनी रहे।

 3. श्री हरि विष्णु-: 

पंच देवों मे भगवान विष्णुजी का भी नाम आता है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु को जगत के पालन पोषण के लिए आग्रह किया और हम सभी के पालन पोषण की ज़िम्मेदारी भगवान विष्णुजी की ही है। जब तक हमारा जीवन है हमारे जीवन के संचालन के लिए और इस जगत के और प्रकृति मे स्थिरता बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के आशीर्वाद की आवश्यकता होती है इनके पूजन मात्र से हमारे जीवन की बाधाएँ समाप्त होती है और हमारे जीवन मे सुख और समृद्धि का संचार होता है।

 4. शक्ति -: 

भारतीय दर्शन शास्त्र के अंतर्गत इस संसार एवं जगत का संचालन का कार्य पुरुष और प्रकृति के रूप मे दो प्रमुख शक्तियाँ करती है। जहां पर प्रकृति का तात्पर्य शक्ति से है जो हमारे जगत मे समानता का भाव बनाए रखने का कार्य करती है। हमारे भारतीय परंपरा मे अर्धनारीश्वर देव की व्याख्या है जिसके अनुसार केवल पुरुष मात्र पूर्णता नहीं प्रदान कर सकता बल्कि शक्ति स्वरूपा मां परांम्बा की आवश्यकता भी है इसलिए शक्ति के स्वरूप मे शक्ति मां परांम्बा का पंच देव में स्थान रखा गया है।

5. शिव-: 

भारतीय सनातन परंपरा मे भगवान शिव को संहारकर्ता के रूप मे जाना जाता है। संहार कर्ता को विस्तार से समझने का प्रयास करे तो इनका कार्य इस जगत मे संतुलन बना कर रखना है। शिव ही है जो इस जगत के विचलन को संतुलित करते है जिस प्रकार से समुद्र मंथन मे सबसे पहले निकले हलाहल विष को कंठ मे धारण करके इन्होने समस्त जगत की रक्षा की। इनकी पूजा और कृपा से हम सभी के जीवन मे संतुलन बना रहता है।। 

* वैसे तो सनातन धर्म मे कई देवी देवताओं का वर्णन है कुछ लोग 33 कोटि देवी देवता की भी बात करते है लेकिन उपरोक्त वर्णित पंच देवों का वर्णन हर प्रमुख ग्रन्थों और कथाओं मे है। कोई भी शुभ कार्य हो अथवा हमारे दिन की शुरुआत इनका पूजन और इनका ध्यान करना आवश्यक है। 

अगर हम ध्यान से देखे तो सूर्य से ऊर्जा, विष्णुजी से जीवन संचालन, शक्ति से पूर्णता, श्रीगणेश से सुख समृद्धि और शिव से संतुलन इन पंच देवों के पाँच गुणो की कृपा प्राप्त करके हम अपने जीवन को बहुत ही सुखमय और खुशहाल बना सकते है।।

                        🕉️

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Posted By Lal Kitab Anmol10:35

Monday 27 November 2023

बुध ग्रह का धनु राशि में गोचर

 

                                     ज्योतिष- ग्रह- नक्षत्र


         27 नवंबर 2023

आज बुध ग्रह 27 नंबर 2023 को धनु राशि में गोचर करेंगे। जो की धनु राशि में 28 दिसंबर 2023 तक रहेंगे।

 


बुध ग्रह व्यक्ति के जीवन में अंतर्दृष्टि, याददाश्त और सीखने की क्षमता को दर्शाता है। साथ ही, यह हमारी तंत्रिका तंत्र, चीज़ों को ग्रहण करने की क्षमता, वाणी, भाषा और फाइनेंस व बैंकिंग से जुड़े क्षेत्रों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि, अब बुध महाराज धनु राशि में विराजमान होंगे जो कि ज्योतिष में राशि चक्र की नौवीं राशि है।

 ▪️धनु राशि समृद्धि, प्रेरणा, ज्ञान और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। ऐसे में, इस अवधि को विशेषज्ञों, मार्गदर्शकों और टीचर्स आदि के लिए शानदार कहा जाएगा और इस दौरान आप दूसरों को प्रभावित करने में सक्षम होंगे। लेकिन, धनु राशि में बैठे बुध जातकों को कैसे परिणाम देंगे, यह बात पूरी तरह से किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध की दशा और स्थिति पर निर्भर होगी।

 ▪️आईए जानते हैं बुध ग्रह का धनु राशि में गोचर आपकी मेष राशि पर क्या प्रभाव डालेगा-:

ध्यान रहे यह राशिफल आपकी चंद्र राशि पर आधारित है और आपकी जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति व ग्रह महादशा- अंतर्दशा से राशिफल में अंतर पड़ सकता है।

 🔹मेष राशि -:

मेष राशि के जातकों के लिए बुध ग्रह तीसरे और छठे भाव के स्वामी हैंं जो अब 27 नवंबर 2023 को आपके नौवें भाव में गोचर कर जाएंगे।

 

कुंडली में नौवां भाव धर्म, पिता, लंबी दूरी की यात्रा, तीर्थ स्थल और भाग्य का भाव माना गया है। इसके परिणामस्वरूप, मेष राशि के जो जातक फिलोसोफर, कंसलटेंट, मेंटर और टीचर के रूप में काम कर रहे हैं, वह इस समय आसानी से दूसरों को प्रभावित करने में सक्षम होंगे क्योंकि इस अवधि में आपकी वाणी बेहद प्रभावशाली रहेगी।

 

जो छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने की योजना बना रहे हैं, वह बुध का धनु राशि में गोचर की अवधि में ऐसा कर सकते हैं क्योंकि यह समय उपयुक्त होगा। जो छात्र सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में जुटे हैं वह इस अवधि में सफल हो सकते हैं।

 

बुध का धनु राशि में गोचर के दौरान मेष राशि वालों को अपने पिता और गुरु का समर्थन प्राप्त होगा। लेकिन, इन जातकों को अपने पिता के स्वास्थ्य को लेकर थोड़ा सावधान रहना होगा क्योंकि बुध ग्रह छठे भाव के स्वामी के रूप में आपके नौवें भाव में गोचर करेंगे। ऐसे में, यह आपके पिता को कुछ स्वास्थ्य समस्याएं देने का काम कर सकते हैं।

 

   इस समय को लंबी दूरी और धार्मिक स्थलों की यात्राओं के लिए अच्छा कहा जाएगा। साथ ही, आपका झुकाव अध्यात्म के प्रति होगा और इसके परिणामस्वरूप, आप अपने अच्छे कर्मों में वृद्धि करना चाहेंगे।

 

 बुध ग्रह की दृष्टि आपके तीसरे भाव पर भी पड़ रही होगी और इसके प्रभाव से इन जातकों को अपने छोटे भाई-बहनों का साथ मिलेगा।

 

उपाय-:

प्रतिदिन पेड़ों में पानी दें/ विशेष कर प्रातः स्नान के बाद प्रतिदिन तुलसी के पौधे को जल अर्पित करें और रोज़ाना तुलसी दल (पत्ती) का सेवन भी करें।

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Posted By Lal Kitab Anmol13:36

Friday 24 November 2023

शास्त्रानुसार हमारे वायुमंडल में दिशाएं 10 होती हैं जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं-:

अंतर्गत लेख:

 ⚛️ ज्योतिष - वास्तु ⚛️ 

उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो। एक मध्य दिशा भी होती है। इस तरह कुल मिलाकर 11 दिशाएं हुईं। प्रत्येक दिशा का एक देवता नियुक्त किया गया है जिसे 'दिग्पाल' कहा गया है अर्थात दिशाओं के पालनहार। दिशाओं की रक्षा करने वाले।

10 दिशा के 10 दिग्पाल-: 

👉 उर्ध्व के ब्रह्मा, 

👉 ईशान के शिव व ईश, 

👉 पूर्व के इंद्र, 

👉 आग्नेय के अग्नि या वह्रि, 

👉 दक्षिण के यम, 

👉 नैऋत्य के नऋति, 

👉 पश्चिम के वरुण, 

👉 वायव्य के वायु और मारुत, 

👉 उत्तर के कुबेर और 

👉 अधो के अनंत।


1.उर्ध्व दिशा-: 

उर्ध्व दिशा के देवता ब्रह्मा हैं। इस दिशा का सबसे ज्यादा महत्व है। आकाश ही ईश्वर है। जो व्यक्ति उर्ध्व मुख होकर प्रार्थना करते हैं उनकी प्रार्थना में असर होता है। वेदानुसार मांगना है तो ब्रह्म और ब्रह्मांड से मांगें, किसी और से नहीं। उससे मांगने से सब कुछ मिलता है।


वास्तु-:  घर की छत, छज्जे, उजालदान, खिड़की और बीच का स्थान इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। आकाश तत्व से हमारी आत्मा में शांति मिलती है। इस दिशा में पत्थर फेंकना, थूकना, पानी उछालना, चिल्लाना या उर्ध्व मुख करके अर्थात आकाश की ओर मुख करके गाली देना वर्जित है। इसका परिणाम घातक होता है।।


2. ईशान दिशा-: 

पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान दिशा कहते हैं। वास्तु अनुसार घर में इस स्थान को ईशान कोण कहते हैं। भगवान शिव का एक नाम ईशान भी है। चूंकि भगवान शिव का आधिपत्य उत्तर-पूर्व दिशा में होता है इसीलिए इस दिशा को ईशान कोण कहा जाता है। इस दिशा के स्वामी ग्रह बृहस्पति और केतु माने गए हैं।


वास्तु-: अनुसार घर, शहर और शरीर का यह हिस्सा सबसे पवित्र होता है इसलिए इसे साफ-स्वच्छ और खाली रखा जाना चाहिए। यहां जल की स्थापना की जाती है जैसे कुआं, बोरिंग, मटका या फिर पीने के पानी का स्थान। इसके अलावा इस स्थान को पूजा का स्थान भी बनाया जा सकता है। इस स्थान पर कूड़ा-करकट रखना, स्टोर, टॉयलेट, किचन वगैरह बनाना, लोहे का कोई भारी सामान रखना वर्जित है। इससे धन-संपत्ति का नाश और दुर्भाग्य का निर्माण होता है।


3. पूर्व दिशा-:

 ईशान के बाद पूर्व दिशा का नंबर आता है। जब सूर्य उत्तरायण होता है तो वह ईशान से ही निकलता है, पूर्व से नहीं। इस दिशा के देवता इंद्र और स्वामी सूर्य हैं। पूर्व दिशा पितृस्थान का द्योतक है।


वास्तु-: घर की पूर्व दिशा में कुछ खुला स्थान और ढाल होना चाहिए। शहर और घर का संपूर्ण पूर्वी क्षेत्र साफ और स्वच्छ होना चाहिए। घर में खिड़की, उजालदान या दरवाजा रख सकते हैं। इस दिशा में कोई रुकावट नहीं होना चाहिए। इस स्थान में घर के वरिष्ठजनों का कमरा नहीं होना चाहिए और कोई भारी सामान भी न रखें। यहां सीढ़ियां भी न बनवाएं।


4. आग्नेय दिशा-: 

दक्षिण और पूर्व के मध्य की दिशा को आग्नेय दिशा कहते हैं। इस दिशा के अधिपति हैं अग्निदेव। शुक्र ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं।


वास्त-:  घर में यह दिशा रसोई या अग्नि संबंधी (इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों आदि) के रखने के लिए विशेष स्थान है। आग्नेय कोण का वास्तुसम्मत होना निवासियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। आग्नेय कोण में शयन कक्ष या पढ़ाई का स्थान नहीं होना चाहिए। इस दिशा में घर का द्वार भी नहीं होना चाहिए। इससे गृहकलह निर्मित होता है और निवासियों का स्वास्थ्य भी खराब रहता है।


5. दक्षिण दिशा-: 

दक्षिण दिशा के अधिपति देवता हैं भगवान यमराज। दक्षिण दिशा में वास्तु के नियमानुसार निर्माण करने से सुख, संपन्नता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।


वास्तु-: वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा में मुख्‍य द्वार नहीं होना चाहिए। इस दिशा में घर का भारी सामान रखना चाहिए। इस दिशा में दरवाजा और खिड़की नहीं होना चाहिए। यह स्थान खाली भी नहीं रखा जाना चाहिए। इस दिशा में घर के भारी सामान रखें। शहर के दक्षिण भाग में आपका घर है तो वास्तु के उपाय करें।।

                          🕉️

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Posted By Lal Kitab Anmol08:08

Monday 13 November 2023

भाई दूज 2023 कब मनाया जाएगा? कंफ्यूजन क्यों तिथि और शुभ मुहूर्त

 LKA 11/11/2023



2023 में भाई दूज कब मनाया जाता है? यहां वह सब कुछ है जो आपको जानना आवश्यक है।

14 या 15 नवंबर, भाई दूज का त्योहार कंफ्यूजन क्यों लेकर आता है

14 या 15 नवंबर को भाई दूज का त्योहार क्यों मनाया जाता हैं

भाई दूज, या भाई टीका या भाइयों और बहनों के बीच के बंधन का जश्न मनाने वाला एक हिंदू त्योहार है। यह दिवाली के दूसरे दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष द्वितीया को मनाया जाता है। 2023 में भाई दूज 14 और 15 नवंबर को मनाया जाएगा.

भाई दूज तिथि और शुभ मुहूर्त

द्रिक पंचांग के अनुसार, भाई दूज 14 नवंबर को शुरू होगा और 15 नवंबर तक चलेगा। पंचांग बताता है कि शुभ मुहूर्त 14 नवंबर (मंगलवार) को दो घंटे से थोड़ा अधिक समय तक रहेगा - दोपहर 01:10 बजे से 03:19 बजे तक। द्वितीया तिथि 14 नवंबर को दोपहर 02:36 बजे शुरू होगी और 15 नवंबर को दोपहर 01:47 बजे समाप्त होगा

भाई दूज एक खुशी का त्योहार है भाई दूज महत्व:

भाई दूज एक खुशी का त्योहार है जिसे पूरे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए स्वादिष्ट भोजन और मिठाइयां बनाती हैं। लोग अपने घरों को फूलों और रंगोली से भी सजाते हैं। भाई अपनी बहनों के घर जाते हैं और उनके माथे पर टीका लगाते हैं। टीका प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक है।

बहनें भी अपने भाई की लंबी उम्र और खुशियों के लिए प्रार्थना करती हैं। टीका समारोह के अलावा, भाई दूज पर बहनें अपने भाइयों के साथ उपहारों का आदान-प्रदान भी करती हैं। लोकप्रिय उपहारों में कपड़े, घड़ियाँ और मिठाइयाँ शामिल हैं। भाई भी अपनी बहनों को आभूषण, सौंदर्य प्रसाधन और पैसे जैसे उपहार देते हैं।

भाई दूज भाइयों और बहनों के लिए अपने बंधन का जश्न मनाने और एक साथ अपनी यादों को संजोने का एक विशेष दिन है। यह एक-दूसरे के प्रति अपना प्यार और आभार व्यक्त करने का समय है।

आचार्य लक्ष्मण सिंह स्वतंत्र

ज्योतिष वास्तु लाल किताब उपाय विशेषज्ञ

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Posted By Lal Kitab Anmol13:57

Thursday 2 November 2023

मुख्य द्वार को साफ रखें। दिव्य वास्तु

अंतर्गत लेख:

 दिव्य वास्तु 

lka 3/10/2023 

मुख्य द्वार वास्तव में अवसर का द्वार है शुभ ऊर्जा के आगमन का द्वार है। (भारतीय संदर्भ में भी सोचें तो लक्ष्मी, देवताओं अथवा पितरों के आव्हान के समय हम घर का मुख्य द्वार खुला छोड़ते है) अतः इस द्वार के सामने रुकावट पैदा करने वालो खम्बे, गमले, साईकिल, कचरे का डब्बा, मकड़ी के जाले, टेलिफोन केवल अथवा बिजली के लटकते हुये तार, आपके घर में शुभ ऊर्जा को रोकते है। मुख्यद्वार की रोज सफाई: अच्छे अवसर प्रदान करती है, अर्थात् मुख्य द्वार के आगे-पीछे किसी प्रकार का अवरोध नहीं होना चाहिये। कई जगह देखा गया है कि दरवाजे के सामने ही जूते रखने की विशेष व्यवस्था होती हैं। यह अशुभ सूचक बात है ।

विपरीत तत्वों को एक ही स्थान पर ना रखें!

कई बार देखा गया है कि फ्रिज के ऊपर ओवन अथवा टोस्टर, स्थान की कमी के कारण रख देते हैं। गैस अथवा ओवन जैसे ही अग्नि संबंधी उपकरणों के उपर पीने का पानी की व्यवस्था घर में क्लेश पैदा करती हैं। मकान, घर व कमरे के कोनों के तत्वों के अनुसार ही उपकरणों को सजाएं।


Posted By Lal Kitab Anmol16:42

शुक्र का कन्या राशि में गोचर 03 नवंबर 2023,शुक्रवार

 lka  3/10/2023



शुक्र स्त्री ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कि सुंदरता व भौतिक सुख सुविधाओं के कारक ग्रह माने जाते हैं। अब शुक्र देव 03 नवंबर 2023 की सुबह 04 बजकर 58 मिनट पर कन्या राशि में गोचर करेंगे।

ज्योतिष में शुक्र ग्रह-:

कुंडली में मज़बूत शुक्र जातकों को जीवन में संतुष्टि, अच्छा स्वास्थ्य और तेज़ बुद्धि प्रदान करते हैं। साथ ही, ऐसे लोगों को शुक्र जीवन में ख़ुशी और आनंद प्राप्त करने की राह में अपार सफलता देते हैं। यह अपना पूरा जीवन ऐशो-आराम और सुख-शांति से पूर्ण व्यतीत करते हैं। धन कमाने के साथ-साथ सुख- सुविधाओं में बढ़ोतरी करने के मामले में भी सफल होते हैं।

इसके विपरीत, जब शुक्र अशुभ ग्रहों जैसे राहु-केतु और मंगल के साथ बैठे होते हैं, तो जातकों को समस्याओं और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। यदि शुक्र महाराज मंगल के साथ युति करते हैं, तो जातक को आवेगी और आक्रामक बनाते हैं और अगर यह छाया ग्रह राहु या केतु के साथ मौजूद होते हैं, तो जातक को त्वचा से जुड़ी समस्याएं, नींद की कमी, सूजन जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है। हालांकि, यदि शुक्र लाभकारी ग्रह जैसे बृहस्पति के साथ स्थित होते हैं तो जातक को प्राप्त होने वाले परिणाम दोगुने हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें व्यापार, ट्रेड, धन कमाने और आय के नए स्त्रोतों में बढ़ोतरी आदि के मामलों में अच्छे परिणामों की प्राप्ति होती है।

हम सभी जानते हैं कि शुक्र प्रेम, सौंदर्य और मनोरंजन आदि के कारक ग्रह हैं और ऐसे में, किसी भी व्यक्ति के जीवन में शुक्र की स्थिति महत्वपूर्ण हो जाती है। लेकिन, जब कुंडली में शुक्र दुर्बल या कमज़ोर अवस्था में मौजूद होता है, तो मनुष्य के जीवन में खुशियों और तालमेल की कमी देखने को मिलती है।वहीं, जब शुक्र का गोचर तुला और वृषभ जैसी राशियों में होता है, उस समय शुक्र देव मज़बूत अवस्था में होते है और इसके फलस्वरूप, पैसा कमाने और रिलेशनशिप को मधुर बनाए रखने में जातकों को भाग्य का साथ मिलता है।।

आइये जानते हैं, शुक्र का कन्या राशि में गोचर कैसे प्रभावित करेगा 12 राशियों को-:

🔹मेष राशि पर प्रभाव व उपाय-:

मेष राशि के जातकों के लिए शुक्र आपके दूसरे और सातवें भाव के स्वामी हैं और अब यह आपके छठे भाव में गोचर करेंगे।

ऐसे में, यह जातक सही फैसले लेने में सक्षम नहीं होंगे जो आपके हितों को बढ़ावा देंगे। इस अवधि में जीवन में सफलता पाने के लक्ष्य से आपका ध्यान भटक सकता है। शुक्र का कन्या राशि में गोचर के दौरान आपके मन में कुछ अनजान भय जन्म ले सकते हैं जिससे बचने की आपको आवश्यकता होगी। सबसे पहले आपको अपने विचारों और कार्यों को लेकर स्पष्ट होना होगा जो आपके लिए जरूरी हैं।हालांकि, शुक्र का कन्या राशि में गोचर की अवधि में आपको नए निवेश जैसे महत्वपूर्ण फैसले लेने से बचने की सलाह दी जाती है।

 करियर की बात करें तो, शुक्र गोचर के दौरान आपको कार्य में बाधाओं और काम में दबाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। करियर में अपने हितों को बढ़ावा देने की राह में यह समस्याएं आपके लिए नुकसानदायक साबित हो सकती हैं। साथ ही, आपको कार्यक्षेत्र पर सहकर्मियों और वरिष्ठों के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव से दो-चार होना पड़ सकता है। शुक्र गोचर की अवधि में संतुष्टि की भावना आपके भीतर से नदारद रह सकती है। ऐसे में, आपको कार्यों को योजनाबद्ध तरीके से करना होगा जिससे आप नाम कमा सकें। संभावना है कि इन जातकों को नौकरी में बदलाव करना पड़ें जो आपको पसंद न आएं।

जिन जातकों का अपना व्यापार है, तो उन्हें इस अवधि में मिलने वाला लाभ कम रह सकता है। साथ ही, हानि होने की भी आशंका है। यदि आप पार्टनरशिप में व्यापार करते हैं, तो पार्टनर के साथ समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। लेकिन,अगर आप एक नई पार्टनरशिप में आने का प्रयास कर रहे हैं, तो सावधान रहें क्योंकि आपको हानि उठानी पड़ सकती है।

आर्थिक दृष्टि से, शुक्र का कन्या राशि में गोचर आपको कुछ नुकसान करवा सकता है जिसकी आपने और यह आपके लिए चिंता का कारण बन सकता है। संभावना है कि यात्रा के दौरान लापरवाही के चलते आपको धन हानि का सामना करना पड़ें। ऐसे में, आपको बहुत सतर्क रहना होगा। इस दौरान आपके ऊपर जिम्मेदारियां अधिक हों सकती हैं और इसके परिणामस्वरूप, आपको धन ख़र्च करना पड़ सकता है। इन खर्चों को पूरा के लिए आपको दोस्तों से धन उधार या फिर कर्ज़ लेने की नौबत आ सकती है इसलिए आपको धन की योजना बनाकर चलना होगा और पैसों को सोच-समझकर खर्च करना होगा।

प्रेम जीवन को देखें तो, शुक्र का कन्या राशि में गोचर की अवधि में भावनाओं की अधिकता होने के कारण आप ख़ुद पर से आपा खो सकते हैं और इसके परिणामस्वरूप, आप तनाव में आ सकते हैं जिससे आपको बचना होगा। इस दौरान रिश्ते में अहंकार के चलते आपको पार्टनर के साथ विवादों का सामना करना पड़ सकता है।।

सेहत के लिहाज़ से, शुक्र गोचर आपको आँखों में संक्रमण और पाचन संबंधित समस्याएं देने का काम कर सकता है जो आपके लिए बाधा का काम कर सकती है।

उपाय-:

प्रतिदिन कम से कम 108 बार "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें। शुक्रवार के दिन छोटी कन्याओं को केला बांटें।।

Posted By Lal Kitab Anmol16:22

Friday 1 September 2023

मांगलिक दोष के प्रति कुछ भ्रांतियां

 🪐ज्योतिष- ग्रह- नक्षत्र🪐

प्राचीन काल से ही विवाह के पूर्व कुंडली मिलान किया जाता रहा है। वर और वधु की जन्म कुंडली के आधार पर उनका विवाह होना योग्य हैं या नहीं, इसे कुंडली मिलान में देखा जाता है। कुंडली मिलान में कई बातें देखी जाती हैं उसमें सबसे ज्यादा मान्यता होती हैं मंगल की। बायोडाटा बनाने के पहले ज्योतिषी से पूछा जाता है वर या कन्या मांगलिक है या नहीं! नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन अगर मांगलिक है तब माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखलाई देने लगती हैं।

 आधे अधूरे ज्ञान ने मंगल को लेकर एक ‘‘हव्वा’’ बना कर रखा है। मांगलिक को मांगलिक ही जीवनसाथी चाहिए अन्यथा अलग- अलग कुतर्क दिए जाते हैं। दोनों में से एक का जीवन संकट में पड़ जाएगा, संतान नहीं होगी, आल्पायु होंगे आदि आदि। मांगलिक होना उनकी दृष्टि में बहुत बडा दोष हैं।

 मांगलिक होने से विवाह में देरी होगी, वैवाहिक जीवन उतार चढ़ाव से भरा रहेगा आदि अनेको भ्रांतियां दिलों दिमाग में घर कर जाती हैं। ऐसी कई बातें ‘‘ मांगलिक होने ’’ से जुड़ी हुई हैं। ऐसे में मांगलिक और उससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने के उपाए|


मांगलिक कितने प्रतिशत

आम धारणा ये है कि मांगलिक बहुत कम होते हैं, परंतु ये गलत धारणा है। ज्योतिष के अनुसार जिन जातक की कुंडली में  प्रथम, चतुर्थ, सप्तम,अष्टम  तथा द्वादश इन भावों पर मंगल होने पर वो अशुभ होता है या साधारण भाषा में उसे मांगलिक कहते हैं।

 हर दिन 24 घंटे होते हैं, प्रत्येक लग्न लगभग 2 घंटे का होता है। इस प्रकार 24 घंटे में लगभग 12 लग्न होते हैं। पहले, चौथे, सातवें, आठवें व बारहवे मंगल होने से उसे मांगलिक कहेंगे। इस प्रकार 12 लग्न में से 5 लग्न वाले पूर्ण रूप से मांगलिक होते हैं। यदि प्रतिशत की बात करें तो 41. 67 प्रतिशत प्रतिदिन मांगलिक उत्पन्न हो रहें हैं। साधारण भाषा में बात करें तो प्रतिदिन 12 लोग उत्पन्न हो रहें हैं उसमें से 5 मांगलिक हैं। इसलिए मांगलिक होने से घबराने की कोई बात नहीं हैं|

 मांगलिक का विवाह मांगलिक के साथ ही होना चाहिेए..


मांगलिक का विवाह मांगलिक के साथ ही होना आवश्यक नहीं है। मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भाव में प्रतिकुल परिणाम आमतौर पर देता है। इसलिए मंगल के सदृश्य दूसरी कुंडली में इन्हीं स्थानों पर मंगल हो तो अच्छा होता है। इसे मांगलिक का मांगलिक से मिलान कहते हैं।

 इसके अलावा एक कुंडली में इन स्थानों में से किसी स्थान पर मंगल हैं और दूसरी कुंडली में मंगल नहीं हैं तब दूसरी कुंडली में इन्हीं स्थानों में से किसी स्थान पर यदि शनि या राहू, केतु तथा सूर्य में से कोई भी एक ग्रह यदि है तब भी उससे मांगलिक कुंडली का मिलान हो सकता है। इसके अलावा चंद्र कुंडली से भी मांगलिक हो तो भी वह मांगलिक माना जाता है।

 

क्या हैं पगड़ी मंगल तथा चुनरी मंगल.

मांगलिक के संदर्भ में पगड़ी मंगल तथा चुनरी मंगल ये दो शब्द सुनने को मिलते हैं। पूछते हैं मंगल कौन सा है, पगड़ी मंगल या चुनरी मंगल। आमजन तो असमंजस में पड़ते ही हैं नए ज्योतिषी भी ये शब्द सुनकर दुविधा में पड़ जाते हैं कि ये क्या बला हैं कोई ग्रंथ में तो ये सुनने के लिए नहीं मिला। पहले लड़के आमतौर पर पगड़ी पहनते थे और लड़कियां चुनरी ओढ़ा करती थीं। इसलिए यदि लड़के की कुंडली मांगलिक है तब उसे पगड़ी मंगल कहा जाता हैं और यदि लड़की की कुंडली मांगलिक हैं तब उसे चुनरी मंगल कहा जाता है।

 

क्या 28 वर्ष के बाद मंगलदोष दूर हो जाता है

कुछ लोगों में यह भी भ्रम है कि आयु के 28 वर्ष के बाद वह कुंडली मांगलिक नहीं होती। ये पुरी तरह से निराधार है।

 साधारण तौर पर यदि कुंडली मे मंगल दोष हैं तब विवाह 28 वर्ष तक नहीं होने देता, कुछ शुभता उसमें हैं तब 24 वें वर्ष में विवाह करवा देता है, परंतु आमतौर पर 28 वर्ष तक विवाह नहीं होता। 28 वर्ष के बाद कुंडली में मंगल का प्रभाव तो रहेगा ही, हां कुछ हद तक उसका कुप्रभाव कुछ कम हो जाता है।

लेकिन सही मायने में कुंडली में पड़ा हुआ कोई भी दोष पूर्णतया कभी खत्म नहीं होता। वह कभी भी अपनी दशा-महादशा अंतर्दशा में प्रभावी जरूर होता है।।

 

ध्यान रहे👉 मंगल दोष से घबराना नहीं चाहिए, काफी ऐसे उपाय हैं जो हम जीवन पर्यंत करते हुए मंगल दोष के कुप्रभाव से मुक्त हो सकते हैं।

Posted By Lal Kitab Anmol16:38

 
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